हमें आता है अब इस ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा कहना
यहाँ मिल जाये कुछ मस्ती उसे ही मयकदा कहना
चला हूँ मैं तो बस इक बूँद लेकिर मापने सागर
तू अब सारे किनारों को ही मेरी अलविदा कहना
जो दरिया गुनगुनाता है नदी जब राग सा छेड़े,
उसे जा के समुन्दर की ज़रा आबो-हवा कहना।
वो तेरी मंजिलों के सब पते ही तुम को देता है,
मगर उसकी ये किस्मत तेरा उसको ला-पता कहना।
जो उस-से मागते हो तुम वो कुदरत दे ही देती है,
इसे अपनी दुआ समझो या फिर उसकी अदा कहना।
मैं अपने हर जनम में ही मरा अपनी वफ़ा करके,
मुझे कहना नहीं आया किसी को बे-वफ़ा कहना।
लकीरें फिर मेरे माथे की अक्सर फट ही जाती है,
मेरा जब भी किसी पत्थर को अपना आईना कहना।
यहाँ मिल जाये कुछ मस्ती उसे ही मयकदा कहना
चला हूँ मैं तो बस इक बूँद लेकिर मापने सागर
तू अब सारे किनारों को ही मेरी अलविदा कहना
जो दरिया गुनगुनाता है नदी जब राग सा छेड़े,
उसे जा के समुन्दर की ज़रा आबो-हवा कहना।
वो तेरी मंजिलों के सब पते ही तुम को देता है,
मगर उसकी ये किस्मत तेरा उसको ला-पता कहना।
जो उस-से मागते हो तुम वो कुदरत दे ही देती है,
इसे अपनी दुआ समझो या फिर उसकी अदा कहना।
मैं अपने हर जनम में ही मरा अपनी वफ़ा करके,
मुझे कहना नहीं आया किसी को बे-वफ़ा कहना।
लकीरें फिर मेरे माथे की अक्सर फट ही जाती है,
मेरा जब भी किसी पत्थर को अपना आईना कहना।
12 comments:
बहुत खूब आता है ज़िंदगी का फलसफा कहना ..अच्छी प्रस्तुति
वो तेरी मंजिलों के सब पते ही तुम को देता है,
मगर उसकी ये किस्मत तेरा उसको ला-पता कहना।
सुन्दर !
जो उस-से मागते हो तुम वो कुदरत दे ही देती है,
इसे अपनी दुआ समझो या फिर उसकी अदा कहना।
waah
sunar srijan swarup ---
हमें आता है अब इस ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा कहना
यहाँ मिल जाये कुछ मस्ती उसे ही मयकदा कहना
khubsurat nazm .
बहुत उम्दा!!
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल बिल्कुल आप...
वाह क्या बात है..बहुत सुंदर ढ़ंग से जिंदगी को बताया है आपने..खुबसुरत..शूभकामनाएं।
जो उस-से मागते हो तुम वो कुदरत दे ही देती है,
इसे अपनी दुआ समझो या फिर उसकी अदा कहना...
बहुत खूब ... खूबसूरत ग़ज़ल है ... कमाल के शेर निकाले हैं ... ये शेर तो बहुत ही ख़ास लगा ...
बढ़िया ग़ज़ल.....बेहतरीन शेर
यूँ तो सभी शेर मन भावन लगे, पर ये दोनों तो कमाल के हैं..,.दिल को छू गए...
वो तेरी मंजिलों के सब पते ही तुम को देता है,
मगर उसकी ये किस्मत तेरा उसको ला-पता कहना।
जो उस-से मागते हो तुम वो कुदरत दे ही देती है,
इसे अपनी दुआ समझो या फिर उसकी अदा कहना।
लकीरें फिर मेरे माथे की अक्सर फट ही जाती है,
मेरा जब भी किसी पत्थर को अपना आईना कहना।
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..सभी शेर दिल को छू जाते हैं..
लकीरें फिर मेरे माथे की अक्सर फट ही जाती है,
मेरा जब भी किसी पत्थर को अपना आईना कहना।
हर शेर लाजवाब.बेहतरीन गजल.
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