Saturday, June 4, 2011

हमें आता है


हमें आता है अब इस ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा कहना
यहाँ मिल जाये कुछ मस्ती उसे ही मयकदा कहना

चला हूँ मैं तो बस इक बूँद लेकिर मापने सागर
तू अब सारे किनारों को ही मेरी अलविदा कहना

जो दरिया गुनगुनाता है नदी जब राग सा छेड़े,
उसे जा के समुन्दर की ज़रा आबो-हवा कहना।

वो तेरी मंजिलों के सब पते ही तुम को देता है,
मगर उसकी ये किस्मत तेरा उसको ला-पता कहना।

जो उस-से मागते हो तुम वो कुदरत दे ही देती है,
इसे अपनी दुआ समझो या फिर उसकी अदा कहना।

मैं अपने हर जनम में ही मरा अपनी वफ़ा करके,
मुझे कहना नहीं आया किसी को बे-वफ़ा कहना।

लकीरें फिर मेरे माथे की अक्सर फट ही जाती है,
मेरा जब भी किसी पत्थर को अपना आईना कहना।

12 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूब आता है ज़िंदगी का फलसफा कहना ..अच्छी प्रस्तुति

वाणी गीत said...

वो तेरी मंजिलों के सब पते ही तुम को देता है,
मगर उसकी ये किस्मत तेरा उसको ला-पता कहना।

सुन्दर !

रश्मि प्रभा... said...

जो उस-से मागते हो तुम वो कुदरत दे ही देती है,
इसे अपनी दुआ समझो या फिर उसकी अदा कहना।
waah

udaya veer singh said...

sunar srijan swarup ---

हमें आता है अब इस ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा कहना
यहाँ मिल जाये कुछ मस्ती उसे ही मयकदा कहना
khubsurat nazm .

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!!

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल बिल्कुल आप...

Er. सत्यम शिवम said...

वाह क्या बात है..बहुत सुंदर ढ़ंग से जिंदगी को बताया है आपने..खुबसुरत..शूभकामनाएं।

दिगम्बर नासवा said...

जो उस-से मागते हो तुम वो कुदरत दे ही देती है,
इसे अपनी दुआ समझो या फिर उसकी अदा कहना...

बहुत खूब ... खूबसूरत ग़ज़ल है ... कमाल के शेर निकाले हैं ... ये शेर तो बहुत ही ख़ास लगा ...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

बढ़िया ग़ज़ल.....बेहतरीन शेर

रंजना said...

यूँ तो सभी शेर मन भावन लगे, पर ये दोनों तो कमाल के हैं..,.दिल को छू गए...

वो तेरी मंजिलों के सब पते ही तुम को देता है,
मगर उसकी ये किस्मत तेरा उसको ला-पता कहना।

जो उस-से मागते हो तुम वो कुदरत दे ही देती है,
इसे अपनी दुआ समझो या फिर उसकी अदा कहना।

Kailash Sharma said...

लकीरें फिर मेरे माथे की अक्सर फट ही जाती है,
मेरा जब भी किसी पत्थर को अपना आईना कहना।

बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..सभी शेर दिल को छू जाते हैं..

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

लकीरें फिर मेरे माथे की अक्सर फट ही जाती है,
मेरा जब भी किसी पत्थर को अपना आईना कहना।
हर शेर लाजवाब.बेहतरीन गजल.